रोजेदारों ने दुआएं मांगीए छोटे.छोटे बच्चों ने भी जुमे को रोजा रखा।
जुमे की नमाज में कोरोना से निजात की दुआं
जसपुर। फनटीवी न्यूज़
नगर एवं देहात क्षेत्र में रमजान के तीसरे जुमे की नमाज मस्जिदों में सोशल डिस्टेंस बनाकर पांच पांच लोगों ने अकीदत के साथ अदा की।वहीं, घरों में जौहर की नमाज पढ़ी गई। नमाज के बाद रोजेदारों ने दुआएं मांगी। छोटे-छोटे बच्चों ने भी जुमे को रोजा रखा।उधर, जामा मस्जिद चैहनान में कुरान पूरा होने पर खत्म शरीफ किया गया।
शुक्रवार को नगर की मस्जिदों में जुमा की नमाज में केवल पांच पांच लोग पहुंचे। उन्होंने सोशल डिस्टेंस बनाकर नमाज अदा की। नमाज के बाद नमाजियों ने रो रोकर मुल्क में अमन शांति,कोरोना से निजात की दुआएं मांगी। जामा मस्जिद छीपीयान में मुफ्ती इस्राइन खान, जामा मस्जिद चैहनान में शहर इमाम ने नमाज पढ़ाई।वहीं, गुरूवार रात को जामा मस्जिद चैहनान में कुरान पूरा होने पर शहर इमाम अमीर हम्जा ने खत्म शरीफ किया। इस दौरान मो. याकूब, इरशाद, साजिद, जाकिर, सईद सदर, शादाब मौजूद रहे।

तीसरा अशरा शुरू, रोकर मांगी मगफिरत की दुआयें
जसपुर। रमजान के दो अशरे पूरे हो चुके हैं। अब रमजान का तीसरा अशरा (जहन्नुम से निजात) 21 वें रोजे के साथ शुरू हुआ। इस अशरे की तमाम फजीलतें बतायी गयी है। यह अशरा इसलिए भी खास है। क्योंकि इस अशरे की एक रात (शबए कद्र) का बेहद खास मुकाम है। इस रात की इबादत को एक हजार महीनों की इबादत से बेहतर बताया जाता है। शुक्रवार को दूसरे अशरे की समाप्ति पर मुस्लिमों ने रो रोकर खुदा से मगफिरत की दुआयें मांगी। वहीं, तमाम मुस्लिमों ने अल्लाह के नाम पर कई चीजों को तकसीम किया। शुक्रवार को 21 वें रोजे के बाद से ही तीसरे अशरे की तैयारियॉ शुरू कर दी गई थी। मुस्लिमों ने जहन्नुम की आग से बचने को खुदा की इबादतों का दौर जारी रखा। मदरसा बदरूलउलुम जामा मस्जिद के मुफ्ती इस्राइल खान ने बताया कि इस अशरे में आने वाली शबेकद्र की रात को मुबारक रात बताया। कहा कि इस रात में बन्दों की तौबा कुबूल होती है। आसमान के दरवाजे खुले रहते हैं। नबी करीम ने इरशाद फरमाया कि जो इंसान इमान के साथ सवाब की नीयत से शबेकद्र में इबादत कर लेता है, उसके पिछले तमाम गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।

दस सव्वाल सन दो हिजरी से शुरू हुआ रोजे रखने का सिलसिला
जसपुर। मदरसा बदरूलउलुम जामा मस्जिद के मुफ्ती इस्राइल खान ने रोजा रखने के पीछे की रूहानी कहानी बताते हुए कहा कि अल्लाह ने अपने रसूल की अदाओं को पंसद फरमाते हुए रोजे फर्ज किए है। नबी-ए-करीम मोहम्मद सल़ रमजान के महीने में रोजे रखते थे। जबकि रोजों की फर्जियत पहले से ही है। जंगे बद्र के मौके पर नबी-ए-करीम मोहम्मद सल़ एवं सहाबा इकराम ने भूखे प्यासे रहकर दीन का परचम बुलंद किया था। उनकी यह अदा अल्लाह को इतनी प्यारी लगी कि रमजान माह में उम्मत पर रोजे फर्ज कर दिए। दस सव्वाल सन दो हिजरी से रोजे रखने का सिलसिला शुरू हुआ। मोमिन भूख प्यासा रहकर अल्लाह की इबादत करता है। अल्लाह इसकी जजा (इनाम) किसी न किसी रूप में उसे देता है।